दशहरा हम मनाते है (स्वैच्छिक कविता प्रतियोगिता हेतु कविता)
दशहरा हम मनाते हैं (स्वैच्छिक कविता प्रतियोगिता हेतु कविता)
दशहरा हम मनाते हैं, रावण के कागज का पुतला बनाते है, पर अपने अंदर के रावण को कहाँ जलाते है। प्रेम-सद्भाव सब खोते जाते है, फिर भी दशहरा हम मनाते है।
चोरी, डकैती और कालाबाजारी आज भी जिंदा है, सत्य और धर्म की हो रही आज निंदा है। अधर्म का उड़ता आजकल हर जगह परिंदा है, ईमानदारी और सच्चाई को भूलते जाते है, फिर भी दशहरा हम मनाते है।
पावन पर्व है दशहरा, दशमुखी अधर्मी रावण का जब राम ने दस मुख काटा था। और संत- महात्माओं एवं प्रजा में सुख- चैन बांटा था , तभी से दशहरा मनाने की प्रथा चली आ रही है, और असत्य पर सत्य का विजय- पताका फहराई जा रही है। वेद और पुराणों के अनुसार महिषासुर जैसे दानव ने अत्याचार का हा-हाकार मचाया था, तब माँ दुर्गा ने ही रणचंडी का रुप धर धर्म का लाज बचाया था। यही गाथा हम हर वर्ष दोहराते है, और इसी खुशी में दशहरा हम मनाते है।
चारों ओर खुशियों की दीवाली का वास हो, हर बार दशहरा इतना खास हो, कहीं भी रावण पनपने ना पाए, सबको मेल-जोल, ईमानदारी और सच्चाई ही भाए । अब सोने की लंका नहीं बनानी है, किसी की खुशियों में आग नहीं लगानी है। रावण ने इसी लालच में अपना पूरा कुनबा गंवाया है, पर कुछ धर्मभ्रष्ट लोगों को ये बात अभी तक नहीं समझ आया है। सबकी सोच नेक हो, हर घर में खुशहाली हो, हर घर में खुशियों की दशहरा और दीवाली हो, यही कामना हम करते जाते है, यही सोच हर वर्ष दशहरा हम मनाते है।।
डॉ. नवनीता गुप्ता (डेंटल सर्जन) जमादार टोला (बेतिया).
Reena yadav
10-Sep-2023 09:40 AM
👍👍
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Shashank मणि Yadava 'सनम'
10-Sep-2023 08:44 AM
बेहतरीन
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Gunjan Kamal
10-Sep-2023 08:32 AM
👏👌
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